*महत्वपूर्ण लेख जो सभी को पढ़ना चाहिए*
अभी हाल ही में आपने 35 करोड़ के फर्जी पी एल के बिल बनाकर गबन की सूचना पढ़ी जिसे सुनकर काफी अचम्भा हुआ और मन सोचने को मजबूर हो गया कि क्या ऐसा भी सम्भव है ?
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क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों हुआ ? जब मंत्रालयिक कार्मिक अपनी जिम्मेदारी में ढिलाई करता है या मार्किट से बने बिल या आफिस में कार्यरत किसी शैक्षिक कर्मचारी पर आंख मूँदकर विश्वास कर लेता है तो ऐसी बाते सुनने को मिलती है।
कभी कभी मंत्रालयिक कार्मिक कम्प्यूटर कार्य मे कमजोर होता है वो आश्रित होने से और काम की अधिकता से बिना बिल देखे उन पर साइन कर देता है। जब बाबू साइन कर देता है तो सम्बन्धित डीडीओ अपने अधीनस्थ कार्मिक पर विश्वास करके साइन कर देता है।
यही से गलतियों का उदय होता है और फिर गलतियां उजागर होने पर बहुत देर हो जाती है और गलती करने वाले सभी कार्मिक और अधिकारी कानून की गिरफ्त में आ जाते हैं।
*इसका समाधान यह है कि कोई भी बिल बने उसकी पूरी जांच हो। बिल का दोहरा भुगतान न हो इसके बारे में आश्वस्त हो जाये तभी बिल को ट्रेजरी भेजे अन्यथा इसके परिणाम बहुत ही गम्भीर होंगे।*
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